ना किसी से कह सकूं ना किसी को बता।

ना किसी को सुन सकूं। ना किसी से कहूं।
ना भाग्य का साथ था।
ना शुरू में वह बात थी।
किसी को ना मैं सुन सकू।
ना किसी से कुछ कहूं। 

समाज से नकारा हूं।
ना कहीं का बुलावा है।
ना कहीं पर जाना है।
इस चमकती हुई दुनिया में।
मेरा छोटा सा ठिकाना है।

शोरगुल की दुनिया में।
मैं शांत सा सितारा हूं।
गम तो... गम तो
मुझ पर भी कुछ कम नहीं
मैं फिर भी मुस्कुरा रहा हूं।

इस सोई हुई परिस्थिति में।
मैं उम्मीद को जगा रहा हूं।

किसी को कुछ न कह सकूं।
ना किसी को बता।
अनजाने से ख्वाब लेकर 
में जिए जा रहा हूं।

किसी के लिए मनोरंजन
किसी के लिए दयनीय।
ना जाने किसके नजरिए में 
मैं क्या बनता जा रहा हूं।

कुछ चाहत तो मेरी भी होंगी।
ना किसी को बता रहा हूं।
कुछ शिकायतें,
बनाने वाले से मेरी भी होंगी।
ना उन्हें किसी को बतला रहा हूं।

किसी को ना मैं सुन सकूं
ना किसी से कुछ कहूं।
मैं शांत सा सितारा 
इस सच्चाई को जिए जा रहा हूं।

~ आदर्श मिश्रा

Few Days ago when i was playing badminton i saw a boy who was deaf and dumb, Neither he can hear nor he can talk. Still by using nonverbal gestures he asked us, that he also wanna play. After observing him i just tried to write what he feels about this society. And one thing if you disagree with any of my thought or what we can (पंक्तियां) you can you can forgive me for thinking that I know a little.👦

Thanks,
Adarsh

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